शुक्रवार, दिसंबर 08, 2006

मार्केटिंग ग्लोबलाइजेशन

हुआ यों कि मैं सडक मार्ग से पैदल अपने मित्र के घर जा रहा था. आप पूछेंगे कि सडक मार्ग से ही क्यों जा रहा था? आपका प्रश्न उचित है, परन्तु हवाई मार्ग से न जा पाने के तीन कारण थे. पहला तो यह कि मेरे पास कोई वायुयान न था. दूसरा मैं हनुमान भी नहीं था जो कि श्री राम का स्विच दबाकर खुद को स्टार्ट कर लेता. और तीसरा और प्रमुख कारण यह कि अगर मेरे पास प्लेन होता भी तो मैं उसे लैण्ड कहाँ करवाता. मित्र के घर को वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर में थोडे ही रूपान्तरित कर डालता. मुझे विषय से भटकने में उतना ही आनन्द आता है, जितना आपको अपने ब्लॉग पर टिपण्णियाँ देख कर आता होगा.

तो मेरे कदम शनै:-शनै: बढ रहे थे. तभी एक मोटरबाईक मेरे पीछे से नजदीक आकर रूकी और एक अपरिचित सज्जन ने पूछा - " क्या आपको इसी ओर जाना है?" मेरे मन में आया कि कह दूँ - "नहीं, जाना तो दूसरी ओर था, मगर आपके दर्शन हेतु इस ओर चला आया". खैर, मेरे हाँ कहने पर उन्होंने मुझे अपने साथ बिठाया मैं थोडा विस्मित था, कभी उन सज्जन की भलमनसाहत के बारे मे सोचता तो कभी किसी अनिष्ट की सोच कर डर जाता. मेरा परिचय जानने के बाद उन्होंने मेरे सिवा मेरे पूरे खानदान को जानने की बात बताई और इसके बाद वे इस प्रकार हँसे ( वे हँस रहे थे, ये तो बाद में पता स्पष्ट हुआ, पहले तो मैं किसी दुर्घटना की आशंका से भयाग्रस्त हो गया) मानो कौन बनेगा करोडपति का पन्द्रहवाँ प्रश्न सही कर के आ रहे हों. तभी रेलवे-क्रॉसिंग आ गया जहाँ एक मालगाडी खडी थी और फाटक बंद थे बाईक रोककर उन्होंने मुझसे अपने काम की बात शुरु की.

उन्होंने मुझसे प्रश्न किया -"क्या आप ग्लोबल नेटवर्क मार्केटिंग के विषय में जानकारी है?" पहले तो मैं उनकी बात ही नहीं समझ पाया दरअसल मैं जल्द से जल्द उनसे छुटकारा पाना चाहता था. फिर भी मैंने अपनी अनभिज्ञता जाहिर की. तब उन्होंने एक मार्केटिं कम्पनी, जिसके वे सदस्य थे, उसके प्लान समझाने शुरु किए. उन के अनुसार अगर मैं इस नेटवर्क से जुड जाऊँ तो मुझे एक वर्ष में इतने रूपए मिल जाएंगे, जिसकी कल्पना मैं स्वप्न में भी नहीं कर सकता था. उन सज्जन ने एक वर्ष में मिलने वाले जो आँकडे मुझे बताए, उन्हें मैं चौथी कक्षा से आज तक अंकों में लिखने में गलती करता हूँ.
उन्होंने कम्पनी का रटा हुआ बायो-डाटा टेलीविजन के कुशल समाचार वाचक की तरह सुनाया. मैं अत्यन्त परेशानी की स्थिति में था खडी हुई ट्रेन को मन ही मन मौलिक गालियाँ दिए जा रहा था. आप गालियों की मौलिकता का अन्दाज़ा इससे लगा सकते हैं कि अगर उन्हें सार्वजनिक कर दूँ, तो ओंकारा के निर्देशक मुझे अपना संवाद-लेखक न रखने पर खुद कोसने लगें.

तो वह अवांछित महोदय मेरे श्रवण-यन्त्रों को कष्ट पहुँचाने पर तुले हुए थे. उनका कहना था कि मुझ जैसे व्यक्ति ही इस नेटवर्क से जुड सकते हैं, क्योंकि मैं 'डायनामिक' हूँ. सहसा मुझे उनके साथ भी 'डायनामिक होने का मन हो आया, लेकिन शिष्टाचारवश ऐसा नहीं कर पाया. अन्तत: ट्रेन को मेरे दुर्भाग्य पर कुछ तरस आया और वह यों इठलाकर चली मानो मुझ पर बहुत बडा एहसान कर रही हो.

क्रॉसिंग पार करते ही बाजार शुरु होते ही मैंने कहा - 'बस, मुझे यहीं तक जाना है'. जबकि मेरे मित्र का घर वहाँ से अच्छे फासले पर था. इतना सुनकर उन्होंने दुपहिया रोकी और उनके चेहरे पर निराशा की लहरें इस प्रकार झलकी, जैसे वे निन्यानबे रन बनाकर कैच आउट हो गये हों. मैं धन्यवाद देकर तुरन्त निकलना चाहता था, मगर उन्होंने मुझे अपना कार्ड देते हुए अपने घर आने का निमन्त्रण दिया. मैंने अपनी स्वीकृति फटाफट दे दी ताकि बात खत्म की जा सके.

फिर बिना रूके मैं अपने मित्र के घर की ओर "जान बची तो लाखों पाए" के भावों के साथ दौड पडा. मित्र के घर पहुँच कर सबसे पहले मंने पानी मांगा. उन महापुरुष की वाणी से मेरे विचार सरकारी दफ्तर के फाईलों की तरह उपर नीचे हो कर बिखर रहे थे. मेरे मित्र ने विज्ञापन वाली मुस्कान के साथ कहा -"पानी बाद में पीना, एक मर्केटिंग कम्पनी का प्लान तो सुन लो, आज ही उसका मेम्बर बना हूँ. मेरी मानो तो तुम भी इसके सदस्य बन जाओ". अब मेरी हालत धोबी के कुत्ते की तरह हो चुकी थी. आसमान से तो गिरा ही था, अब खजूर को भी यहीं मिलना था. अब मुझे पता चला कि यह नेट्वर्क सचमुच कितना ग्लोबल हो चुका है.

भगवान बचाए इस खतरनाक ग्लोबलाइजेशन से!

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

हा हा हा
इस प्रकार के लोग सर्वव्यापि हैं. आजकल तो अनुभव के बल पर शक्ल देख कर ही पता चल चल जाता है कि यह बंदा किसी चैन-मार्केटिंग से जुड़ा हुआ है. अपन दस फूट दूर से ही किनारा कर लेते है.

Pratik Pandey ने कहा…

हा हा हा, मज़ा आ गया आपकी बातें सुनकर। वाक़ई ये चेन-मार्केटिंग वाले पीछे पड़ जाते हैं और तब तक पीछा नहीं छोड़ते, जब तक आप अपनी सज्जनता न छोड़ दें... जब तक उनको धकिया के भगा न दें :-)

बेनामी ने कहा…

व्यंग है, पर भाई इन से बच के रहना वरना घर में बनियान धोने लायक साबुन के पैसे भी नहीं रहेंगे !

रिपुदमन

बेनामी ने कहा…

बाप रे !भगवान करे आप का पाला दोबारा उनसे न पड़े |